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लोक जीवन में जल और पर्यावरण के सरोकार | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

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लोक जीवन में जल और पर्यावरण के सरोकार     - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                                               गर्मियां शुरू होते ही सबसे पहली चिन्ता जागती है जल समस्या की। जल का घटता हुआ स्तर इस बात की संभावना प्रकट करने लगता है कि आगे चल कर दिन और कठिनाइयों भरे और शुष्क होंगे। वहीं यदि हम अपनी लोक चेतना को टटोलें तो पाएंगे कि लोक जीवन में जल और पर्यावरण के प्रति हमेशा जागरूकता रही है। यह जागरूकता किसी नारे या अभियान के समान नहीं थी बल्कि प्रकृति ये आत्मीयता के रूप में थी। एक रिश्तेदारी के रूप में थी। संकट तभी से शुरू हुआ जब से हमने प्रकृति से अपनी रिश्तेदारियां को भुला दीं और हम उसके शोषणकर्ता बन गए।           महात्मा गांधी ने 26 सितम्बर 1929 के ‘यंग इंडिया’ के अंक में लिखा था- ‘‘ऐसी हालत में वृक्ष-पूजा में कोई मौलिक बुराई या हानि दिखाई देने के बजाए मुझे तो इसमें एक गहरी भावना और काव्यमय सौंदर्य ही दिखाई देता है। वह समस्त वनस्पति-जगत् के लिए सच्चे पूजा-भाव का प्रतीक है। वनस्पति-जगत तो सुन्दर रूपों बौर आकृतियों क