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बहुत कुछ सिखाती है ‘खांडव वन दहन’ की घटना | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

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बहुत कुछ सिखाती है ‘खांडव वन दहन’ की घटना     - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                                               हम प्रकृति को नुकसान पहुंचाते हैं। प्रकृति उदार है, वह हमें दंड नहीं देती। वह हमारे अपराधों को भूल भी जाती है, लेकिन हमारे ही अपराध हमें भविष्य में दंड देते हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण महाकाव्य “महाभारत” में खांडव वन की प्रलयंकारी अग्नि की कथा के रूप में मौजूद है। खांडव वन को जलाने में दो मनुष्यों ने अग्नि की मदद की, लेकिन उनमें से एक को एक वन वृक्ष ने सुरक्षा प्रदान की। प्रकृति और मनुष्य में यही अंतर है। आज जब दुनिया के बड़े-बड़े जंगल हर साल जलकर राख हो रहे हैं, तो हमें इस कथा से सबक लेना चाहिए और जंगलों को जलने के लिए छोड़ने के बजाय उनके रक्षक बनना चाहिए। तो आइए एक बार फिर खांडव वन की कथा को याद करें ताकि हम उस गलती को दोहराने से बच सकें। जब हम ‘‘महाभारत’’ पढ़ते हैं तो कृष्ण और अर्जुन को सत्य और मानवता के पक्ष में खड़ा पाते हैं। लेकिन खांडव वन की घटना को पढ़ते हुए हमें कुछ अजीब भी लगता है। इस कथा में प्रक

वृक्षों को कटने से बचाने वाला एक था ‘चिपको आंदोलन’ | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | नयादौर | शून्यकाल

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वृक्षों को कटने से बचाने वाला एक था ‘चिपको आंदोलन’ - डाॅ (सुश्री) शरद  सिंह                                                                                               हर साल तपन बढ़ती जा रही है। गरमी का मौसम आते ही अहसास होता है कि हमने उन पेड़ों को कट जाने दिया जो हमें ठंडक दे सकते थे और जो वातावरण के तापमान को बढ़ने से रोक सकते थे। हमारी आंखों के सामने दशकों पुराने पेड़ काटे जा रहे हैं और हम विकास का अंधाराग गाते हुए पर्यावरर्णीय अंधकार की ओर बढ़ते जा रहे हैं। पेड़ों के कटने से होने वाले नुकसान को भांप कर ही एक आंदोलन चलाया गया था, जिसका नाम था- चिपको आंदोलन। इस आंदोलन में अनेक महिलाओं ने सैकड़ों पेड़ों को कटने से बचाने का महत्वपूर्ण कार्य किया था और इस आंदोलन के नेतृत्वकर्ता थे सुंदरलाल बहुगुणा। आज फिर ऐसे किसी आंदोलन की जरूरत महसूस होने लगी है।