चर्चा प्लस | आवश्यक है जलवायु परिवर्तन जनसाक्षरता | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस  
आवश्यक है जलवायु परिवर्तन जनसाक्षरता
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                                        
      ठंड का मौसम और गर्मायी हुई राजनीति के बीच जलवायु परिवर्तन की बातें कुछ लोगों को ‘‘ऑफ बीट’’ लग सकती हैं लेकिन अगर जलवायु हमारे कारण ‘‘ऑफ बीट’’ हो गया तो राजनीति भी किसी काम नहीं आने वाली है। मौसम में अनियमितता, नई-नई बीमारियों का फैलना, बदलते मौसमी चक्र का अनाज उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव, मनुष्य के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में बदलाव आदि कुछ ऐसे संकेत हैं जो मानव जीवन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के खतरों के बारे में चेतावनी दे रहे हैं। वहीं, आम नागरिक अभी भी जलवायु परिवर्तन के बारे में सोचता भी नहीं है क्योंकि उसे जलवायु परिवर्तन और इसके खतरनाक प्रभावों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है। इसलिए, आम नागरिकों के लिए जलवायु परिवर्तन संबंधी साक्षरता सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है।
एक साथ 78 सांसदों को संसद से सस्पेंड कर दिया जाना एक सनसनीखेज़ ख़बर बनी। दूसरे दिन फिर 49 सांसद सस्पेंड किए गए। स्वाभाविक था क्योंकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ऐसी घटना पहली बार घटी थी। कोई भी ख़बर पहली बार में हमें सबसे ज्यादा चौंकाती है, फिर हम उसके आदी होते जाते हैं। यदि प्याज के दाम या टमाटर के दाम अचानक बढ़ते हैं तो हमारा ध्यान उस पर जाता है फिर हम उस बढ़े हुए दाम पर चर्चा करते-करते इतने बेख़बर हो जाते हैं कि दस से पचार हुए दाम की कीमत घट कर चालीस या पैंतालीस होना हमें दाम गिरने जैसा, सस्ता लगने जैसा लगने लगता है। एक साथ 78 के बाद बीस, पची, चौंतीस की संख्या पर हम चौंकना भूल जाएंगे। यही वह प्रवृति है जो हमें लगातार संकट की ओर धकेल रही है और हम बेख़बर बने हुए हैं। जी हां, मुंबई की बाढ़, बैंगलोर की बाढ और जापान की सुनामी तक को हमने तेजी से भुला दिया है। अब यह आमजन में चर्चा का विषय नहीं रह गया है। वह आमजन जो सबसे अधिक प्रभावित होता है किसी भी प्राकृतिक आपदा से। दिल्ली के पाॅल्यूशन से अधिक यदि मीडिया को राजनीति के पाॅल्यूशन की ख़बरों में टीआरपी दिखती है तो इसे दुर्भाग्यपूर्ण के अतिरिक्त और कुछ नहीं कहा जा सकता है। कई बार ऐसी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलती हैं जैसे जलवायु या पर्यावरण चिंता कोई फ़ालतू का विषय हो।  

हम क्यों नहीं समझ पाते हैं कि पर्यावरण के सभी अंगों में से जलवायु मानव जीवन को सबसे अधिक प्रभावित करती है। जलवायु का मनुष्य के पहनावे, खान-पान, जीवनशैली और जनस्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। भारत में कृषि देश की अर्थव्यवस्था की धुरी है और जलवायु विविधताओं से सबसे अधिक प्रभावित होती है। जलवायु हमारे जीवन के लगभग हर पहलू को प्रभावित करती है, हमारे भोजन स्रोतों से लेकर हमारे परिवहन बुनियादी ढांचे तक, हम कौन से कपड़े पहनते हैं, हम छुट्टियों पर कहाँ जाते हैं। इसका हमारी आजीविका, हमारे स्वास्थ्य और हमारे भविष्य पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। जलवायु किसी विशेष स्थान पर मौसम की स्थिति का दीर्घकालिक पैटर्न है। इसके अलावा, जलवायु प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कई मानवीय गतिविधियों जैसे उद्योग, व्यवसाय, परिवहन और संचार प्रणाली आदि को प्रभावित करती है।
जलवायु परिवर्तन में इतनी शक्ति है कि यह लोगों के जीवन को नष्ट भी कर सकता है और सुधार भी सकता है। इसके प्रभावों को लेकर समय-समय पर कई भविष्यवाणियां की जाती रही हैं। संयुक्त राष्ट्र के सतत लक्ष्यों पर 2018 की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन भूख और विस्थापन का एक प्रमुख कारण है। बुंदेलखंड या महाराष्ट्र से किसानों का पलायन के पीदे एक बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन भी है जो मौसमों का अनियमिता के रूप में हमारे सामने है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि कुपोषण, मलेरिया, डायरिया और जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती गर्मी के कारण 2030 से 2050 के बीच मौतों की संख्या में वृद्धि होगी। कई कॉर्पोरेट संस्थानों, अनुसंधान और शैक्षणिक संस्थानों, गैर-सरकारी संगठनों आदि ने जलवायु परिवर्तन के बारे में लोगों के बीच समझ विकसित करने की पहल की है। इन सबके बावजूद जिस गति से काम होना चाहिए उस गति से काम नहीं हो रहा है। सरकारी प्रयासों में गरीबी उन्मूलन, स्वच्छता, स्वास्थ्य और मानवाधिकार को प्रमुखता दी जा रही है। जलवायु परिवर्तन से संबंधित प्रयासों की कमी के कारण केरल में बाढ़ आई। इसमें कोई संदेह नहीं है कि जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव भारत सहित कई विकासशील देशों पर अधिक पड़ेगा। विश्व बैंक का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन से अगले तीस वर्षों में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 2.8 प्रतिशत की कमी आएगी और देश की लगभग आधी आबादी के जीवन स्तर में गिरावट आएगी। इस संदर्भ में यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि क्या जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होने की संभावना वाले लोग इसके दुष्प्रभावों से अवगत हैं? क्या वे जानते हैं कि यह परिवर्तन उनके स्वास्थ्य, आजीविका, उनके परिवारों और समुदायों के जीवन को कैसे प्रभावित करने वाला है?

यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य है लेकिन पूर्णतः असंभव नहीं है। संयुक्त प्रयास करने पर ग्लोबल वार्मिंग को रोका जा सकता है। इसके लिए व्यक्तियों और सरकारों दोनों को इसे हासिल करने की दिशा में कदम उठाने होंगे। हमें ग्रीनहाउस गैस कटौती से शुरुआत करनी चाहिए। इसके अलावा, उन्हें गैसोलीन की खपत पर भी नजर रखने की जरूरत है। हाइब्रिड कार पर स्विच करें और कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम करें। इसके अतिरिक्त, नागरिक सार्वजनिक परिवहन या कारपूल को एक साथ लेना चुन सकते हैं। इसके बाद, रीसाइक्लिंग को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, जब आप खरीदारी करने जाएं तो अपना खुद का कपड़े का बैग ले जाएं। एक और कदम जो आप उठा सकते हैं वह है बिजली के उपयोग को सीमित करना जो कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को रोकेगा। सरकार की ओर से, उन्हें औद्योगिक कचरे को नियंत्रित करना चाहिए और उन्हें हवा में हानिकारक गैसों का उत्सर्जन करने से रोकना चाहिए। वनों की कटाई को तुरंत रोका जाना चाहिए और पेड़ों के रोपण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। संक्षेप में, हम सभी को इस तथ्य का एहसास होना चाहिए कि हमारी पृथ्वी अच्छी नहीं है। इसका इलाज करने की जरूरत है और हम इसे ठीक करने में मदद कर सकते हैं। भविष्य की पीढ़ियों की पीड़ा को रोकने के लिए वर्तमान पीढ़ी को ग्लोबल वार्मिंग को रोकने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। इसलिए, हर छोटा कदम, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो, बहुत महत्व रखता है और ग्लोबल वार्मिंग को रोकने में काफी महत्वपूर्ण है।

हालांकि, हमारे देश ने हमेशा जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता दिखाकर वैश्विक स्तर पर पहल की है। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय और स्थानीय सर्वोत्तम प्रथाओं को बढ़ावा देकर लोगों और समुदायों के बीच जलवायु-लचीले व्यवहार-परिवर्तन समाधानों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कई संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के साथ साझेदारी में ‘लाईफ’ नामक एक आंदोलन शुरू किया। इसके लिए लोगों, विश्वविद्यालयों, विचारकों, गैर-लाभकारी संगठनों आदि को जलवायु-अनुकूल उत्पादन और रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए जलवायु-संबंधी, पारंपरिक और नवीन सर्वोत्तम प्रथाओं और समाधान प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया गया था। इस बीच, ‘‘लाइफ ग्लोबल कॉल फॉर आइडियाज एंड पेपर्स’’ भी लॉन्च किया गया, जिसमें दुनिया भर के व्यक्तियों, विश्वविद्यालयों, थिंक टैंक, गैर-लाभकारी संस्थाओं और अन्य लोगों को उत्कृष्ट जलवायु-अनुकूल व्यवहार परिवर्तन समाधान प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया गया। लाईफ अभियान का यह विचार भारत के प्रधान मंत्री द्वारा 2021 में ग्लासगो में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (काॅप 26) के दौरान प्रस्तुत किया गया था। इसमें पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवन शैली को बढ़ावा देने और ‘सावधान और सावधान’ पर ध्यान केंद्रित करने के उपायों का विस्तार किया जाएगा। बिना सोचे-समझे संसाधन खर्च और बर्बादी के बजाय विवेकपूर्ण उपयोग।
इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, ‘‘लाईफ का दृष्टिकोण ऐसी जीवनशैली अपनाना है जो हमारे ग्रह के साथ तालमेल बिठाए और उसे नुकसान न पहुंचाए। ऐसी जीवनशैली जीने वालों को ग्रह-अनुकूल लोगों का दर्जा दिया जाता है।’’
प्रधान मंत्री ने कहा था कि ‘‘मिशन लाइफ अतीत से प्रेरणा लेकर, वर्तमान में कार्रवाई करके भविष्य पर ध्यान केंद्रित करता है। कम करें, पुनः उपयोग करें और रीसायकल करें- हमारे जीवन की मूल अवधारणाएं होनी चाहिए। परिपत्र अर्थव्यवस्था हमारी संस्कृति और भारत के वन के केंद्र में है कवर बढ़ रहा है और शेर, बाघ, तेंदुए, हाथियों और गैंडों की आबादी भी बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि स्थापित बिजली क्षमता का 2040ः तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित स्रोतों से आ सकता है। गंतव्य तक पहुंचने की भारत की प्रतिबद्धता हासिल की गई है तय समय से कई साल आगे।’’

अब सवाल यह नहीं है कि सरकार क्या चाहती है या देश के प्रधानमंत्री क्या चाहते हैं? अब सवाल है जनता क्या चाहती है? क्या वह भावी पीढ़ी को शुद्ध हवा, शुद्ध पानी, जंगल की हरियाली, जैवविविधता से भरी दुनिया देना चाहती है या फिर एक अदद आॅक्सिजन सिलेंडर पाने के लिए छटपटाता हुआ देखना चाहती है? वस्तुतः जलवायु परिवर्तन के प्रति अज्ञान के कारण अथवा न्यूनतम जानकारी के कारण आमजन इसकी गंभीरता को समझ ही नहीं पा रहा है। यदि हम यह गांरटी पाना चाहते हैं कि कोई भूखा न रहे, तो हमें अनाज, पैदावार और मौसम की स्थिति को समझना होगा। ‘‘मोटा अनाज खाना लाभकारी है’’ का संदेश कुछ समय तक ही बहलाए रख सकता है, यदि स्थिति की गंभीरता आमजन समझ ले तो वह स्वयं अन्न की बरबादी करने से अपना हाथ रोक लेगा और मोटे अनाज की अहमियत भी उसे समझ में आ जाएगी। अतः जिस प्रकार से जनसाक्षरता पर ध्यान दिया गया, ठीक उसी तरह जलवायु परिवर्तन साक्षरता को भी बुनियादी जागरूकता से जोड़ना होगा।  
निश्चित रूप से ये प्रयास सफलतापूर्वक किये जा रहे हैं लेकिन आम लोगों में पर्याप्त जागरूकता लाने की अभी भी कमी है। जब तक प्रत्येक नागरिक जलवायु संरक्षण के बारे में साक्षर नहीं होगा, सभी प्रयासों की गति धीमी रहेगी। अब समय आ गया है जब आम लोगों को यह जानना चाहिए कि अगर ध्रुवों पर ग्लेशियर तेजी से पिघलते हैं तो इसका असर हर व्यक्ति, हर जानवर और हर पौधे पर पड़ता है। दरअसल हमारा भ्रम, हमारा अज्ञान नहीं, अपितु हमारे प्रयास, हमारी जागरूकता ही हमें और हमारी भावी पीढ़ी को ज़िन्दा रखेंगे।    
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